नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघंटेति

कूष्मांडेति चतुर्थकम्।

पंचमं स्कंदमातेति

षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति

महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च

नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नमानि ब्रह्मणेव महात्मना।।

नवरात्र की शुरुआत, या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।

शैलपुत्री का मतलब क्या होता है?

नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है, जो पवित्रता, शक्ति और स्थिरता का प्रतीक हैं। हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इसके अलावा उन्हें पार्वती और हेमावती के नाम से भी जाना जाता है।

“शैलपुत्री” नाम का शाब्दिक अर्थ पर्वत (शैला) की बेटी (पुत्री) है। सती भवानी, पार्वती या हेमावती, हिमालय के राजा हिमावत की बेटी के रूप में जानी जाती है। ब्रह्मा , विष्णु और शिव की शक्ति का अवतार, वह एक बैल की सवारी करती है और अपने दोनों हाथों में त्रिशूल और कमल रखती है।


माता शैलपुत्री की कहानी क्या है?

पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री का नाम सती था और वे भगवान शिव की पत्नी थीं. एक बार सती के पिता प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ करवाया और उसमें तमाम देवी-देवताओं को शामिल होने का निमंत्रण भेजा. सती भी उस यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल थीं. हालांकि प्रजापति दक्ष ने सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया|  मां शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार पर सवार होती हैं और उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है. मां शैलपुत्री के पूजन से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है| मां शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार पर सवार होती हैं और उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है. मां शैलपुत्री के पूजन से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है|

मां शैलपुत्री को गुड़हल का लाल फूल और सफेद कनेर का फूल चढ़ाना बहुत-ही शुभ माना जाता है। उनको संफेद रंग पसंद है|  इसके साथ ही उनको गाय के घी का बना भोग लगाना शुभ माना जाता है|  नवरात्र के पहले दिन गाय के घी से बना हुआ हलवा, रबड़ी या मावे के लड्डू का भोग लगता है|

माता शैलपुत्री को इन मंत्रों से करें प्रसन्न 

वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌।।
 

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।
 

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

माता शैलपुत्री की पूजा का महत्व

माता शैलपुत्री की पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह में परेशानियां आ रही हैं उन्हें शैलपुत्री माता की पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। माता की पूजा से ग्रह-कलेश भी दूर होता है। इसके साथ ही आरोग्य का वरदान भी माता देती हैं। धन, यश की कामना रखने वालों को भी माता की पूजा करनी चाहिए। 

यूपी के वाराणसी में स्थित मां शैलपुत्री  सबसे प्राचीन मंदिर

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