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नवरात्रि का दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है
ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं
ब्रह्मचारिणी का क्या अर्थ है?
ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। ब्रह्मचारिणी देवी के दोनो हाथों मे अक्षमाला और कमंडल होता है। माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपने भक्तो पर कृपादृष्टि रखती है एवं सम्पूर्ण कष्ट दूर करके अभीष्ट कामनाओ की पूर्ति करती है। ब्रह्मचारिणी देवी मां दुर्गा का द्वितीय रूप है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तपश्चारिणी हैं यानी तपस्या करने वाली, इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हैं।
मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन प्रात:काल उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहन लें।
इसके बाद मंदिर को साफ कर लें और चारों तरफ गंगाजल छिड़क लें।
अब माता रानी को फूल, चंदन, अक्षत, रोली, पान, सुपारी और लौंग अर्पित करें।
मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत और चीनी या गुड़ वाली मिठाई का भोग लगाएं।
अब माता रानी की आरती उतारें और मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें।
मां ब्रह्मचारिणी कौन है?
मां ब्रह्मचारिणी को देवी पार्वती के अविवाहित रूप में पूजा जाता है. वह सफेद वस्त्र धारण करती हैं. उनके दाहिने हाथ में एक रुद्राक्ष माला होती है और बाएं हाथ में कमंडल (पानी का एक बर्तन) होता है. रुद्राक्ष को उनके वनवासी जीवन में भगवान शिव को पति के रूप में पाने की तपस्या से जोड़कर देखा जाता है| हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। मां के इस स्वरुप को मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र क्या है?
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र ‘ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः’ का 108 बार जाप कर सकते हैं। इसके अलावा ‘ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
ब्रह्मचारिणी का पसंदीदा रंग कौन सा है?
कहा जाता है कि हरा रंग मां ब्रह्मचारिणी को काफी पसंद है. इसलिए अगर आप नवरात्रि के दूसरे दिन हरे रंग का वस्त्र धारण कर पूजा-पाठ करेंगे तो मां की विशेष कृपा आप पर पड़ेगी
मां ब्रह्मचारिणी की उत्पत्ति कैसे हुई?
मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारद जी के उपदेश का पालन किया जिसके अनुसार भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां माता ने घोर तपस्या की थी| इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया|
देवी ब्रह्मचारिणी किसका प्रतिनिधित्व करती है?
वह तपस्या, आत्म-नियंत्रण और पवित्रता का अवतार है। देवी ब्रह्मचारिणी को अक्सर एक युवा तपस्वी के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसके दाहिने हाथ में माला और बाएं हाथ में पानी का बर्तन (कमंडलु) होता है। वह आमतौर पर पवित्रता और सादगी का प्रतीक सफेद पोशाक पहने नजर आती हैं।
नवरात्रि दूसरा दिन- मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
ब्रह्मचारिणी स्तोत्र
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
ब्रह्मचारिणी कवच स्तोत्र
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती (Aarti of Maa Brahmacharini)
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी को पीला फूल और भोग बहुत प्रिय है
देवी को इस दिन पीले फूल अर्पित करें। चाहें तो गुड़हल या कमल फूल भी चढ़ा सकते है। साथ में देवी को अक्षत, रोली और चंदन लगाएं। इस दिन देवी को केसरिया मिठाई, केला आदि का भोग लगाना चाहिए।
तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम देती है मां ब्रह्मचारिणी
पूजा के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर पढ़े
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥1॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥2॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥3॥
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