नवरात्र के छटे दिन देवी मां को कात्यायनी के रूप में पूजा जाता है। 

नवरात्र के छटे दिन देवी मां को कात्यायनी के रूप में पूजा जाता है। 

स्कंद पुराण में कहा गया है कि देवी के कात्यायनी रूप की उत्पत्ति परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से हुई थी। वहीं वामन पुराण के अनुसार सभी देवताओं ने अपनी ऊर्जा को बाहर निकालकर कात्यायन ऋषि के आश्रम में इकट्ठा किया और कात्यायन ऋषि ने उस शक्तिपूंज को एक देवी का रूप दिया। जो देवी पार्वती द्वारा दिए गए सिंह (शेर) पर विराजमान थी। कात्यायन ऋषि ने रूप दिया इसलिए वो दिन कात्यायनी कहलाईं और उन्होंने ही महिषासुर का वध किया। माँ की पूजा में शहद का प्रयोग जरूर किया जाना चाहिए, क्योंकि मां को शहद बहुत पसंद है। शहद वाले पान का भोग भी माँ कात्यायिनी को लगता है।

मां कात्यायनी की 18 भुजाएँ थीं| उनकी प्रत्येक भुजाओं में त्रिशूल, चक्र, शंख, गदा, तलवार, ढाल, धनुष , बाण, वज्र, गदा, युद्ध-कुल्हाड़ी, माला , गुलाब जल जैसे कई शक्तिशाली शस्त्र थे। माता ने सिंह पर चढ़कर महिषासुर का संहार करने के लिए उसकी ओर बढ़ी। मां कात्यायनी के डर से महिषासुर भागा   और एक मरी हुई भैंस के अंदर छिप गया। लेकिन उसके सभी प्रयास व्यर्थ रहे, क्योंकि वह देवी कात्यायनी के क्रोध से बच न सका और देवी द्वारा उसका संहार हुआ |

षष्टी माँ को ही बिहार , उत्तर प्रदेश में छट मैया के रूप में पूजते हैं

महर्षि कात्यायन ने कई वर्षो तक माता की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर माता ने वरदान स्वरुप महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्म  लिया | माँ को महिसासुर मर्दिनी के नाम से भी पूजते हैं क्योंकि माता ने राक्षस महिषासुर का वध किया था इसी दिन को विजयदशमी के नाम से भी पूजा जाट हैं | रावण का वध भी विजय दशमी के दिन भगवान् राम ने किया था | इस दिन अस्त्र शस्त्र दोनों की ही पूजा की जाती हैं | विजयदशमी का दिन अपने शत्रु पैर विजय के लिए ख़ास मन जाता हैं | इस दिन शुरू किये कोर्ट केस में स्वत ही विजय प्राप्त होती हैं |

५१ शक्ति पीठ में से एक वृन्दावन में कात्यायिनी शक्ति पीठ जहाँ माता सती के सती होने के बाद महादेव द्वारा शोक में सटी के शरीर को लेकर जहाँ जहाँ सटी के शरीर के टुकड़े गिरे वहां ही माँ की शक्ति पीठ सिद्ध हुयी हैं | मथुरा का भूतेश्वर मंदिर में माता की शक्ति पीठ हैं जहाँ माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे | वृन्दावन की शक्ति पीठ की जगह माता के केश गिरे  थे|

इनकी पूजा से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं। मां कात्यायनी की पूजा से अविवाहित लड़कियों के विवाह के योग बनते हैं और सुयोग्य वर भी मिलता है। रोग, कस्ट , संकट , भय सबका विनाश होता हैं|

माँ कात्यायिनी को प्रसन्न करने के लिए मंत्र

1 ॐ ह्रीं नम:।।’

चन्द्रहासोज्जवलकराशार्दुलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

2- कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी।

नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।

मां कात्यानी आरती


जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।

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